प्रतिस्पर्धा......
२१ वीं सदी का जमाना है
प्रतिस्पर्धा की इस अंधी दोड में,
अब्बल जो आना है-
बात शिक्षा की हो,
या नम्बरों की
बात टी.वी.की हो,
या खबरों की
बात माया की हो,
या ममता की
पक्ष की हो या बिपक्ष की
सभी क्षेत्रो का यही हाल है,
आगे निकलने की
सिर्फ यही एक चाल है
प्रतिस्पर्धा, जरूरी है
जरूरत है.?
नजरिया बदलने की
जागरूकता लाने की
हो रहे घमासान प्रतिस्पर्धा,में
कुछ करने की
कुछ पाने की
आओ मिलकर
निष्ठा से कसम खाए
आपस में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होने दे
कहीं हम "लक्ष्य" भटक न जाए ....
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-dheerendra
bilkul sach kaha...badhiya
जवाब देंहटाएंek kavita isi bhav ke antargat maine bhi likhi thi....Chinta note kamane ki..http://www.poeticprakash.com/2009/07/blog-post_17.html
Dhanyavaad...
दौड़ मची है, होड़ मची है।
जवाब देंहटाएंहम आपसे प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते जनाब!
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है ...
जवाब देंहटाएंअति उत्तम..
बधाई एवं शुभकामनायें...!
swasth pratispardha zaruri hai...
जवाब देंहटाएंआगे बढ़ें और बढावें तो प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता ही नही.मैं या अहंकार का पोषण ही प्रतिस्पर्धा को जन्म देता है.सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसमय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.
Bilkul sahi kaha hai aage nikalne ki to hod se lag gai hai chahe tarika koi bhi ho...
जवाब देंहटाएंSarthak rachna..
Badhai
सुन्दर रचना ,बधाई.
जवाब देंहटाएंस्वस्थ प्रतिस्पर्धा........... बहुत सही लिखा है. .
जवाब देंहटाएंआओ मिलकर
जवाब देंहटाएंनिष्ठा से कसम खाए
आपस में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होने दे
कहीं हम "लक्ष्य" भटक न जाए ...
सही कहा है आपने । संपूर्ण परिवर्तन के निमित्त स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की नितांत आवश्यकता है । मेरे पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए मेरी ओर से आपको हार्दिक बधाई । धन्यवाद सहित ।
बहुत सच्चा और अच्छा लिखा है...वाकई कोई क्षेत्र नहीं बचा जहाँ स्पर्धा में गर्दन ना काटी जा रही हो...साहित्य/लेखन जैसे साफ़ सुथरे क्षेत्र भी इससे बच नहीं पाए हैं...दुखद है ये..
जवाब देंहटाएंस्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो तो सबसे अच्छी बात है।
जवाब देंहटाएंपैसे की अँधी दौड़ और प्रतिस्पर्धा. दोनों का बढ़िया चित्रण. सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंसच कहती कविता।
जवाब देंहटाएं-----
कल 02/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
इस आपाधापी ...में सभी इस बीमारी का शिकार है ....
जवाब देंहटाएंमेरी कुछ अगस्त माह की कविता पढ़े ...आपको अच्छा लगेगा .........आभार
अफसोस तो इसी बात का है, कि अब हमारे समाज में हम सब के बीच स्वस्थ "प्रतिस्पर्धा" बची ही कहाँ हैं ...अब तो बस दौड़ मची है....होड मची हैं...जिसमें अगर कोई सबसे ज्यादा पिस रहा है तो वो है विद्यार्थी वर्ग जो कि पहले विध्यार्थी बन शिक्षा प्रणाली के हाथों पिस्ता है और आगे जाकर एक आम आदमी बन सरकार के हाथों ...अब तो बस जीवन कि यही रीत है।
जवाब देंहटाएंप्रतिस्पर्धा होती ही क्यों है ? लक्ष्य तक दूसरे से पहले पहुँच कर उसे जीत लेने के ही लिए न ?
जवाब देंहटाएं:)
तो लक्ष्य से भटकना कैसे होगा ?
हाँ यह ज़रूर है की हम सब ही , जो सच ही महत्त्वपूर्ण लक्ष्य हैं , उन असल लक्ष्यों को छोड़ कर बेकार और मिथ्या लक्ष्यों के पीछे भाग रहे हैं |
अंधी दौड़ में शामिल होना हमारी भूल ही है!
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत मे ही तो है स्वस्थ प्रतिस्पर्धा । चितर् सुंदर है ।
जवाब देंहटाएंआनंद स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में ही है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंवर्तमान के सत्य को अभिव्यक्त कर दिया आद धीरेन्द्र सर आपने...
पहले मैं की प्रतिस्पर्धा में देश भटक रहा है....
सादर....
बिलकुल सही कहा आपने... होड़ है..दौड़ है... कैसे भी हो..
जवाब देंहटाएंवर्तमान समय की सटीक अभिव्यक्ति...सुंदर रचना|
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति .......
जवाब देंहटाएंबहुत सच कहा है....
जवाब देंहटाएंसटीक लिखा है आपने! सुन्दर चित्र के साथ उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंआदरणीय धीरेन्द्र जी काश ये स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के मायने समझ जाते ...गन्दी राज नीति से उबर जाते ..बहुत सुन्दर रचना सीख देती हुयी
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
दौड़ -दोड, अव्वल - अब्बल, विपक्ष - बिपक्ष
आगे निकलने की
सिर्फ यही एक चाल है
प्रतिस्पर्धा, जरूरी है
जरूरत है.?
नजरिया बदलने की
जागरूकता लाने की
हो रहे घमासान प्रतिस्पर्धा,में
कुछ करने की
कुछ पाने की
ek sacchi bat ko kavita me bakhubi utara hai apne..
जवाब देंहटाएंati sundar rachana
बहुत खूबसूरत सोच ...सच ही आजकल अंधी दोड मे लोग शामिल हैं ...आभार
जवाब देंहटाएंसंदेश देती हुई अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंबेहद खुबसूरत लिखा है , अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा है !
जवाब देंहटाएंप्रतिस्पर्धा और स्वस्थ, क्या ये मुमकिन है ?
अच्छी रचना ....
21वीं सदी का आपने बढ़िया खाका खींचा है!
जवाब देंहटाएंदो पैरों के घोड़े को साभार आपके ब्लॉग से अपने ब्लॉग की एक पोस्ट पर लगाया है मैंने!
बहुत ही बढ़िया संदेश , अनोखे प्रतीकात्मक चित्र के साथ.
जवाब देंहटाएंआओ मिलकर निष्ठा से कसम खाएआपस में
जवाब देंहटाएंस्वस्थ प्रतिस्पर्धा होने दे
कहीं हम "लक्ष्य" भटक न जाए ....
सही कहा है आपने... सुन्दर रचना...
behtreen post....
जवाब देंहटाएंआओ मिलकर
जवाब देंहटाएंनिष्ठा से कसम खाए
आपस में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होने दे
कहीं हम "लक्ष्य" भटक न जाए ....
bahut khub.
bahut uttam seekh deti hui rachna.sahi likha hai swasth pratispardha honi chahiye.
जवाब देंहटाएंआओ मिलकर
जवाब देंहटाएंनिष्ठा से कसम खाए
आपस में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होने दे
कहीं हम "लक्ष्य" भटक न जाए ....
pavitra bhav ki sundar rachna.
बिल्कुल सही कहा है आपने ।
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने. सब तरफ दौड़ ही दौड़ है.. .....बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंसटीक बात कही है .. हर जगह गलाकाट प्रतियोगिता चलती है
जवाब देंहटाएंलक्ष्य से तो समाज भटक ही चुका है .. एक अंधी प्रतिस्पर्धा में सब दौड़ रहे हैं ... इक दूजे को कुचल रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंwaah..bahoot hi sunder bhaav....
जवाब देंहटाएंnice approach;;and attitude;;
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